पहुँचाएगा नहीं तू ठिकाने लगाएगा
अब उस गली में ग़ैर को रहबर बनाएँगे
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(375) Peoples Rate This
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
चाल और है दुनिया की हमारा है चलन और
वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर
आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब