पहली बातें हैं न पहले की मुलाक़ातें हैं
अब दिनों में वो रहा लुत्फ़ न रातों में रहा
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Gulzar
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Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
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हम तो मस्जिद से भी मायूस ही आए 'नातिक़'
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का
पहुँचाएगा नहीं तू ठिकाने लगाएगा
दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
सुब्ह-ए-पीरी में फिरा शाम-ए-जवानी का गया
उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
कश्ती है घाट पर तू चले क्यूँ न दूर आज