न मय-कशी न इबादत हमारी आदत है
कि सामने कोई काम आ गया तो कर लेना
Rahat Indori
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कहने वाले वो सुनने वाला मैं
हमें कम-बख़्त एहसास-ए-ख़ुदी उस दर पे ले बैठा
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
भर पाए जान-ए-ज़ार तिरी दोस्ती से हम
खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
चाल और है दुनिया की हमारा है चलन और
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का