मुझ से नाराज़ हैं जो लोग वो ख़ुश हैं उन से
मैं जुदा चीज़ हूँ 'नातिक़' मिरे अशआ'र जुदा
Faiz Ahmad Faiz
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कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
लो जुनूँ की सवारी आ पहुँची
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर
ढूँडती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
शम-ए-कुश्ता की तरह मैं तिरी महफ़िल से उठा