मिल गए तुम हाथ उठा कर मुझ को सब कुछ मिल गया
आज तो घर लूट लाई है दुआ तासीर की
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कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़
बुतों के साथ ली दी सी जो याद-अल्लाह बाक़ी है
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम