मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
मैं था नशे में चूर नशा मुझ में चूर था
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कैफ़ियत-ए-तज़ाद अगर हो न बयान-ए-शे'र में
तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
मिरे ग़म की उन्हें किस ने ख़बर की
उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती
ढूँढ तो बुत भी यहीं मिल जाएँगे मर्द-ए-ख़ुदा
रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया