क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
क्या किया करते हैं सदमों से हिरासाँ हो कर
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सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी
दम कोई दम का है मेहमाँ अलविदा'अ
अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
जी चुराने की नहीं शर्त दिल-ए-ज़ार यहाँ
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
कौन इस रंग से जामे से हुआ था बाहर
अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना