कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
कीजिए सब कुछ मगर अपनी ज़रूरत देख कर
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ऐ जुनूँ बाइस-ए-बदहाली-ए-सहरा क्या है
फिर चाक-दामनी की हमें क़द्र क्यूँ न हो
नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
महफ़िल-ए-नाज़ से मैं हो के परेशान उठा
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
इज़्तिराब-ए-दिल में आ जा कर दवाम आ ही गया
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया
कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
ऐसे बोहतान लगाए कि ख़ुदा याद आया
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था