जो बला आती है आती है बला की 'नातिक़'
मेरी मुश्किल का तरीक़ा नहीं आसाँ होना
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दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
ऐ मुसव्विर सूरत-ए-दिल-गीर खींच
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
दम कोई दम का है मेहमाँ अलविदा'अ
इस ग़म को ग़म कहें तो कहें सौ में हम ग़लत
पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर
अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना
कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
इज़्तिराब-ए-दिल में आ जा कर दवाम आ ही गया