हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
चल नग़्मा-ए-'नातिक़' सुन सहरा-ए-जुनूँ नय ला
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Parveen Shakir
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Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
मुझ को मालूम हुआ अब कि ज़माना तुम हो
सब कुछ मुझे मुश्किल है न पूछो मिरी मुश्किल
आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती
चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
मुद्दतें हो गई होता नहीं फेरा तेरा