हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
हाँ देखते चलो कि तमाशा है राह का
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उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
ख़िरद-आमोज़ हस्ती है मगर अब क्या कहूँ वो भी
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
मेरे सीने में नहीं है तो ये समझो कि न था
गुज़रती है मज़े से वाइ'ज़ों की ज़िंदगी अब तो
आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह