हाँ जान तो देंगे मगर ऐ मौत अभी दम ले
ऐसा न कहें वो कि हम आए तो चले आप
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आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
गुज़रती है मज़े से वाइ'ज़ों की ज़िंदगी अब तो
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें
खाइए ये ज़हर कब तक खाए जाती है ये ज़ीस्त
तो आख़िर साज़-ए-हस्ती क्यूँ तरब-आहंग-ए-महफ़िल था
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
अव्वल अव्वल ख़ूब दौड़ी कश्ती-ए-अहल-ए-हवस
बंदगी कीजिए मगर किस की