हमें कम-बख़्त एहसास-ए-ख़ुदी उस दर पे ले बैठा
हम उठ जाते तो वो पर्दा भी उठ जाता जो हाइल था
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आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को
आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
बंदगी कीजिए मगर किस की