हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
हमें है आज कल ऐसे किसी हुनर की तलाश
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पहुँचाएगा नहीं तू ठिकाने लगाएगा
तुम अगर जाओ तो वहशत मिरी खा जाए मुझे
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
रक्खी हुई है सारी ख़ुदाई तिरे लिए
वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी
इस ख़ाक-दान-ए-दहर में घुटता अगर है दम
अब कहाँ गुफ़्तुगू मोहब्बत की
रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
हम पाँव भी पड़ते हैं तो अल्लाह-रे नख़वत
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
ऐसे बोहतान लगाए कि ख़ुदा याद आया