है मरज़ तो जो कुछ है थी दवा तो जैसी थी
चारासाज़ को हम ने हाँ घटा हुआ पाया
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(325) Peoples Rate This
आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
तुम ऐसे अच्छे कि अच्छे नहीं किसी के साथ
ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
हाथ रहते हैं कई दिन से गरेबाँ के क़रीब
उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें