इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
जाने दो गए शिकवे आ जाओ मैं बाज़ आया
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(332) Peoples Rate This
सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
इज़्तिराब-ए-दिल में आ जा कर दवाम आ ही गया
उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
कश्ती है घाट पर तू चले क्यूँ न दूर आज
ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
मुझ को मालूम हुआ अब कि ज़माना तुम हो
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे