दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
एक एक अपने को हम ने दूसरा पाया
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
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Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
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मुझ से नाराज़ हैं जो लोग वो ख़ुश हैं उन से
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता
भर पाए जान-ए-ज़ार तिरी दोस्ती से हम
पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर
रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को
कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह