ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
आप ने महफ़िल से उठवा कर कहाँ रक्खा मुझे
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(346) Peoples Rate This
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
देखता रहता हूँ अक्सर शाम-ए-क़ुदरत देख कर
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे