छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी
ज़िद का सवाल है तो फिर जा इसी बात पर नहीं
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उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
नाज़ उधर दिल को उड़ा लेने की घातों में रहा
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही