चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
शब-ए-फ़िराक़ जो मुझ को रही सहर की तलाश
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(268) Peoples Rate This
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
बादा-मस्ती आ करामत हो के मयख़ाने में आ
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम
कहने वाले वो सुनने वाला मैं
हम पाँव भी पड़ते हैं तो अल्लाह-रे नख़वत
खाइए ये ज़हर कब तक खाए जाती है ये ज़ीस्त
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
कौन इस रंग से जामे से हुआ था बाहर
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला