बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
रास्ता भूल के बैठा हूँ सनम-ख़ाने का
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भर पाए जान-ए-ज़ार तिरी दोस्ती से हम
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
मुद्दतें हो गई होता नहीं फेरा तेरा
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
न मय-कशी न इबादत हमारी आदत है
ऐ मुसव्विर सूरत-ए-दिल-गीर खींच
हमें जो याद है हम तो उसी से काम लेते हैं
हम तो मस्जिद से भी मायूस ही आए 'नातिक़'
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज