ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
आज तू ने देख कर मेरी तरफ़ देखा मुझे
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हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
धूम कर रक्खी थी कल रिंदों ने बज़्म-ए-वा'ज़ में
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
इस ग़म को ग़म कहें तो कहें सौ में हम ग़लत
मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
तुम्हारी बात का इतना है ए'तिबार हमें
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के