ऐ जुनूँ बाइस-ए-बद-हाली-ए-सहरा क्या है
ये मिरा घर तो नहीं था कि जो वीराँ होता
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अब गर्दिश-ए-दौराँ को ले आते हैं क़ाबू में
कर मुरत्तब कुछ नए अंदाज़ से अपना बयाँ
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का
हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
पहुँच गए तो करेंगे इधर-उधर की तलाश