अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना
उड़ गए धुएँ अपने रह गया धुआँ अपना
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(308) Peoples Rate This
कैफ़ियत-ए-तज़ाद अगर हो न बयान-ए-शे'र में
खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
बंदगी कीजिए मगर किस की
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ
फिर चाक-दामनी की हमें क़द्र क्यूँ न हो
ज़िक्र-ए-शराब-ए-नाब पे वाइ'ज़ उखड़ गया