अब गर्दिश-ए-दौराँ को ले आते हैं क़ाबू में
हम दौर चलाते हैं साक़ी से कहो मय ला
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कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
इस ख़ाक-दान-ए-दहर में घुटता अगर है दम
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
जी चुराने की नहीं शर्त दिल-ए-ज़ार यहाँ