आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें
तूफ़ान-ए-ज़िंदगी की वो हलचल उठा तो ला
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आती है याद सुब्ह-ए-मसर्रत की बार बार
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
कर मुरत्तब कुछ नए अंदाज़ से अपना बयाँ
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
मुद्दतें हो गई होता नहीं फेरा तेरा
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
मिल गए तुम हाथ उठा कर मुझ को सब कुछ मिल गया
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें