रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
बाद-ए-बहार दौड़ के बादल उठा तो ला
आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें
तूफ़ान-ए-ज़िंदगी की वो हलचल उठा तो ला
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
मंगल है जिस में जा के वो जंगल उठा तो ला
लालच बता के दूर से वाइज़ का रंग देख
ख़ाली ही क्यूँ न हो कोई बोतल उठा तो ला
ऐ ज़िंदगी जुनूँ न सही बे-ख़ुदी सही
तू कुछ भी अपनी अक़्ल से पागल उठा तो ला
आती है याद सुब्ह-ए-मसर्रत की बार बार
ख़ुर्शीद आते आते उसे कल उठा तो ला
कश्ती है घाट पर तो चले क्यूँ न दौर आज
कल बस चले चले न चले चल उठा तो ला
'नातिक़' जुनून-ए-ख़िदमत-ए-अहबाब किस लिए
देखें तो क्या मिला है तुझे फल उठा तो ला
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