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रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास - नातिक़ गुलावठी कविता - Darsaal

रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास

रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास

मैं उन से दूर दूर तो ये मेरे पास पास

ये भी नशे में क्यूँ न मिरे साथ चूर हो

साक़ी ख़ुदा के वास्ते रख दे गिलास पास

फिर चाक-दामनी की हमें क़द्र क्यूँ न हो

जब और दूसरा नहीं कोई लिबास पास

चकरा रहा है कूचा-ए-गेसू में जा के दिल

मंडला रही है मौत मुसाफ़िर के आस-पास

'नातिक़' ख़ुदा की शान कि अपना नहीं कोई

होने को यूँ तो सारी ख़ुदाई है आस-पास

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In Hindi By Famous Poet Natiq Gulavthi. is written by Natiq Gulavthi. Complete Poem in Hindi by Natiq Gulavthi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.