रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
मैं बुरा हो गया बुरा न हुआ
कहने वाले वो सुनने वाला मैं
एक भी आज दूसरा न हुआ
अब कहाँ गुफ़्तुगू मोहब्बत की
ऐसी बातें हुए ज़माना हुआ
शिकवा-ए-लुत्फ़ उन से क्या 'नातिक़'
न कभी आप ने कहा न हुआ
Wasi Shah
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खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास
रक्खी हुई है सारी ख़ुदाई तिरे लिए
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
महफ़िल-ए-नाज़ से मैं हो के परेशान उठा
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ
ऐ मुसव्विर सूरत-ए-दिल-गीर खींच
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके