मिरे ग़म की उन्हें किस ने ख़बर की
मिरे ग़म की उन्हें किस ने ख़बर की
गई क्यूँ घर से बाहर बात घर की
घुटा जाता है दम रुख़्सत हुआ कौन
ये दुनिया गर्द है किस के सफ़र की
ये कैसा खेल है ऐ चश्म-ए-पुर-फ़न
उधर क्यूँ हो गई दुनिया इधर की
हुनर सीखा ज़माना ऐब का था
ख़ता की और हम ने जान कर की
बहुत रुस्वा हुए बस ऐ दुआ बस
ख़ुशामद अब नहीं होती असर की
बहुत क्यूँ हो न रुस्वाई हमारी
यही तो है कमाई उम्र भर की
टली 'नातिक़' मुसीबत जान ले कर
हमें रुख़्सत किया और आप सरकी
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