क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
किस से मिलना है ख़ाक में मिल के
ऐ दिल शिकवा-संज क्या गुज़री
किस लिए होंट रह गए सिल के
मिटते जाते हैं राह-ए-उम्र में दोस्त
मिल रहे हैं निशान मंज़िल के
छोड़ 'नातिक़' फ़ज़ा-ए-बज़्म-ए-शिकस्त
उठ के टुकड़े सँभाल ले दिल के
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पहली बातें हैं न पहले की मुलाक़ातें हैं
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास
रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़
कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
कर मुरत्तब कुछ नए अंदाज़ से अपना बयाँ
ग़म-ओ-अंदोह का लश्कर भी चला आता है
ऐ जुनूँ बाइस-ए-बदहाली-ए-सहरा क्या है
कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर