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किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना - नातिक़ गुलावठी कविता - Darsaal

किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना

किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना

वक़्त की ये बातें हैं वक़्त अब कहाँ अपना

अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना

उड़ गए धुएँ अपने रह गया धुआँ अपना

ऐ ख़ुदा गिला सुन ले अपनी बे-नियाज़ी का

आज हाल कहता है एक बे-ज़बाँ अपना

सो के रात काटी है बे-कसी के पहलू में

चाँदनी ने देखा है मेरे घर समाँ अपना

घर तो अब भी दुनिया के धूप ही में बनते हैं

क्यूँ उठा नहीं लेता साया आसमाँ अपना

हम सफ़र के क़िस्से को ख़त्म कर के चलते हैं

रास्ता बदलती है अपनी दास्ताँ अपना

ना-मुराद दुनिया में रह के ख़ूब भर पाए

चल निकल चलें ऐ दिल कुछ नहीं यहाँ अपना

जानते हुए 'नातिक़' हम-वतन की हालत को

ढूँडते फिरें जा कर किस लिए मकाँ अपना

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In Hindi By Famous Poet Natiq Gulavthi. is written by Natiq Gulavthi. Complete Poem in Hindi by Natiq Gulavthi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.