नातिक़ गुलावठी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नातिक़ गुलावठी (page 3)
नाम | नातिक़ गुलावठी |
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अंग्रेज़ी नाम | Natiq Gulavthi |
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
हाथ रहते हैं कई दिन से गरेबाँ के क़रीब
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
हाँ जान तो देंगे मगर ऐ मौत अभी दम ले
हमें कम-बख़्त एहसास-ए-ख़ुदी उस दर पे ले बैठा
हमें जो याद है हम तो उसी से काम लेते हैं
हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
है मरज़ तो जो कुछ है थी दवा तो जैसी थी
गुज़रती है मज़े से वाइ'ज़ों की ज़िंदगी अब तो
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
ग़म-ओ-अंदोह का लश्कर भी चला आता है
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
ढूँढ तो बुत भी यहीं मिल जाएँगे मर्द-ए-ख़ुदा
धूम कर रक्खी थी कल रिंदों ने बज़्म-ए-वा'ज़ में
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी
चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
चाल और है दुनिया की हमारा है चलन और
बुतों के साथ ली दी सी जो याद-अल्लाह बाक़ी है
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
बंदगी कीजिए मगर किस की