Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_fc97f48582661b7fcdca9782b3003f1b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मैं चंचल इठलाती नदिया भँवर से कब तक बचती मैं - नसरीन नक़्क़ाश कविता - Darsaal

मैं चंचल इठलाती नदिया भँवर से कब तक बचती मैं

मैं चंचल इठलाती नदिया भँवर से कब तक बचती मैं

लहर लहर में डूब के उभरी उभर उभर के डूबी मैं

मैं कोई पत्थर तो नहीं थी मुझ को छूकर भी देखा

बर्फ़ को थोड़ी आँच तो मिलती आप ही आप पिघलती मैं

अंग लगा कर बेदर्दी ने आग सी भर दी नस नस में

टूट गए सब लाज के घुंघरू ऐसा झूम के नाची मैं

प्रेम के बंधन में बंध कर साजन इतनी दूरी क्यूँ

तुम भी प्यासे प्यासे बादल प्यासी प्यासी धरती मैं

आने वाले द्वार पे पहरों दस्तक दे कर लौट गए

हाथ में ले कर पढ़ने बैठी जब प्रीतम की चिट्ठी मैं

सन्नाटे में जब जब छनकी बैरी पड़ोसन की पायल

जाने वाले याद में तेरी रात रात-भर जागी मैं

क्या अंधा विश्वास था ऐ 'नसरीन' वो मुझ को मना लेगा

हर बंधन से छूट गया वो हाए क्यूँ उस से रूठी मैं

(442) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nasreen Naqqash. is written by Nasreen Naqqash. Complete Poem in Hindi by Nasreen Naqqash. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.