आगही
हौज़ के साथ साथ उगी सब्ज़ घास पर
धूप की लरज़िशें
धीमी धीमी दूध की बे-मज़ा कच्ची कच्ची महक
आगही
आँखें
आँखों के अंदर भी आँखें उग आई हैं
क्या
घास की शाख़ होती नहीं न सही
घास की शाख़ से फिर भी
चिमटे हुई सब्ज़ टिड्डे ने भरपूर सी नींद में
जागते लहलहाते
पलकें झपकते हुए फूल को खा लिया
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