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बर्फ़-ज़ार-ए-जाँ की तह में खोलते पानी का है - नस्र ग़ज़ाली कविता - Darsaal

बर्फ़-ज़ार-ए-जाँ की तह में खोलते पानी का है

बर्फ़-ज़ार-ए-जाँ की तह में खोलते पानी का है

जो भी क़िस्सा है लहू की शो'ला-सामानी का है

आसमाँ से रौशनी उतरी भी धुँदला भी चुकी

नाम रौशन है तो बस ज़ुल्मत की ताबानी का है

रेगज़ार-ए-लब कि हर सू उग रही है तिश्नगी

आँख में मंज़र उछलते-कूदते पानी का है

बे-सबब हरगिज़ नहीं दस्त-ए-करम कम कम इधर

उस को अंदाज़ा हमारी तंग-दामानी का है

शहर हो या हो बयाबाँ घर हो या कोई खंडर

सिलसिला चारों तरफ़ ग़ूल-ए-बयाबानी का है

मोड़ पर पहुँचे तो देखोगे कि हर मंज़िल है सहल

बस यही इक रास्ता है जो परेशानी का है

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In Hindi By Famous Poet Nasr Ghazali. is written by Nasr Ghazali. Complete Poem in Hindi by Nasr Ghazali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.