तुझ से मिलूँगा फिर कभी ख़्वाब-ओ-ख़याल भी नहीं
तुझ से मिलूँगा फिर कभी ख़्वाब-ओ-ख़याल भी नहीं
चेहरे पे इन दिनों मगर गर्द-ए-मलाल भी नहीं
आईना-ए-सिफ़ात में ज़ात का अक्स क्या मिले
उस की तलाश हो कहाँ जिस की मिसाल भी नहीं
तेरे सितम की गुफ़्तुगू तेरे करम की जुस्तुजू
सुब्ह-ए-फ़िराक़ भी नहीं शाम-ए-विसाल भी नहीं
मुझ को तलब से क्या मिला दर्द-ओ-सराब आगही
मेरी नज़र में मो'तबर शहर-ए-जमाल भी नहीं
वो भी थे दिन कि आइना बन के वो सामने रहे
ये भी है अब कि ख़्वाहिश-ए-पुर्सिश-ए-हाल भी नहीं
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