रात सुनसान है गली ख़ामोश
रात सुनसान है गली ख़ामोश
फिर रहा है इक अजनबी ख़ामोश
बात दिल की छुपाई लाख उन से
आँख लेकिन न रह सकी ख़ामोश
हिज्र की आग में जले चुप-चाप
ज़िंदगी यूँ गुज़ार दी ख़ामोश
पूजता हूँ तुझे ख़यालों में
कर रहा हूँ मैं बंदगी ख़ामोश
शम-ए-महफ़िल कुछ इस तरह चुप है
जैसे जाड़े की चाँदनी ख़ामोश
हम से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
लब हिले पर ज़बाँ रही ख़ामोश
कोई हंगामा चाहिए 'नासिर'
कैसे गुज़रेगी ज़िंदगी ख़ामोश
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