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बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं - नासिर ज़ैदी कविता - Darsaal

बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं

बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं

दोबारा मिलने का इम्कान है इरादा नहीं

किया है वक़्त ने यूँ तार तार पैराहन

बरहनगी के सिवा जिस्म पर लबादा नहीं

तिरा ख़याल है तन्हाइयाँ हैं और मैं हूँ

मिरे नसीब में अब वस्ल का इआदा नहीं

मिला भी वो तो कहाँ उस का नाम लिक्खेंगे

किताब-ए-ज़ीस्त का कोई वरक़ भी सादा नहीं

न ज़ात में कोई मंज़िल न काएनात में है

सफ़र करूँ तो कहाँ कोई मेरा जादा नहीं

हवा के साथ ही शायद बदल गई दुनिया

कि जाम जाम नहीं और बादा बादा नहीं

ख़ुद अपने साए में ही बैठना पड़ा 'नासिर'

कोई शजर मिरे रस्ते में ईस्तादा नहीं

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In Hindi By Famous Poet Nasir Zaidi. is written by Nasir Zaidi. Complete Poem in Hindi by Nasir Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.