तुझ से बिछड़े गाँव छूटा शहर में आ कर बसे
तज दिए सब संगी साथी त्याग डाला देस भी
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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
फिर लहलहा उठा समय आमों पे बौर का
यख़-बस्ता ठंडकों में उजाला जड़ा हुआ
जब कि तुझ बिन नहीं मौजूद कोई
एक काटा राम ने सीता के साथ
याद आए तू मुझ को बहुत जब शब कटे जब पौ फटे
पाटी हैं हम ने बिफरी चनाबें तिरे लिए
नस नस में नशा प्यार का मामूर हुआ है
नई-निकोर निराली पर
धुन नहीं कोई मुद्दआ' कैसा
नैन नशे की चढ़ती नुमू पर