पाटी हैं हम ने बिफरी चनाबें तिरे लिए
हम ले गए हैं तुझ को स्वयंवर से जीत के
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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
हिजरतों में हूजुरियों के जतन
घर वाले भी सोए हैं अभी शब भी घनी है
चौखटा दिल का यहाँ है हू-ब-हू तुझ सा कोई
तुझे पछाड़ न दें रौशनी में तेरे रफ़ीक़
फिर मुझे मिल नदी किनारे कहीं
इक ख़ित्ता-ए-ख़ूँ में कहीं दरिया के किनारे
खड़ा जूड़ा गुँधी बालों की चोटी
क़यास बन-बास को मुआ'नी दे
और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है
जल भी मिलन के कष्ट का थल भी अमीन था