कुछ गुरेज़ाँ भी रहे हम ख़ुद से
कुछ कहानी भी अलमनाक हुई
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
दो एक साल ही इक से सराही जाती है
शाह-बलूत के ऊपर देख
दिल मिटे प्यार की अपीलों पर
बेकल है मुख निगाह में बोसों की प्यास है
इक ख़ित्ता-ए-ख़ूँ में कहीं दरिया के किनारे
दिल से हुसूल-ए-ज़र के सभी ज़ोम हट गए
पाटी हैं हम ने बिफरी चनाबें तिरे लिए
लोग थे क्या जो अज़लों से मुश्ताक़ हुए
याद आए तू मुझ को बहुत जब शब कटे जब पौ फटे
एक काटा राम ने सीता के साथ