एक काटा राम ने सीता के साथ
दूसरा बन बॉस मेरे नाम पर
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देखा क़द-ए-गुनाह पे जब इस को मुल्तफ़ित
दरिया पे टीकरी से परे ख़ानक़ाह थी
नैन नचंत हैं देख के तुझ को
नई-निकोर निराली पर
बदन सुंदर सजल मुख पर सिंंहापा
तुझे पछाड़ न दें रौशनी में तेरे रफ़ीक़
हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
ज़िद न कर मत समय मिलन का उजाड़
अब्र नारियल नद्दी रास्ते पे मैं और तू
शाह-बलूत के ऊपर देख
खिले धान खिलखिला कर पड़े नद्दियों में नाके
दिल को जब आगही की आग लगे