अख़रोट खाएँ तापें अँगेठी पे आग आ
रस्ते तमाम गाँव के कोहरे से अट गए
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ज़िद न कर मत समय मिलन का उजाड़
लोग थे क्या जो अज़लों से मुश्ताक़ हुए
खड़ा जूड़ा गुँधी बालों की चोटी
कह दे मन की बात तो गोरी काहे को शरमाती है
देखा क़द-ए-गुनाह पे जब इस को मुल्तफ़ित
तुझे पछाड़ न दें रौशनी में तेरे रफ़ीक़
नैन नशे की चढ़ती नुमू पर
दिल मिटे प्यार की अपीलों पर
और सफ़र लम्बा हुआ हर गाम पर
चौखटा दिल का यहाँ है हू-ब-हू तुझ सा कोई
साँस में साजना हवा की तरह
क़यास बन-बास को मुआ'नी दे