यख़-बस्ता ठंडकों में उजाला जड़ा हुआ
यख़-बस्ता ठंडकों में उजाला जड़ा हुआ
कोहरे के साथ राह पे कूड़ा पड़ा हुआ
अब भी बुलंद-तर हैं सिपाह-ए-ख़ुदा के सर
परचम है अब भी चोब-ए-अलम पर चढ़ा हुआ
नमरूद की चिता कहीं पाटा है कर्बला
हर जुग में इम्तिहान हमारा कड़ा हुआ
बे-आबरू है फ़न अभी आवाज़ बे-बदन
सर पर अभी है हिज्र का बादल खड़ा हुआ
चाहत की इंतिहा कभी तेरी मिरी वफ़ा
इजरा का माजरा कभी कच्चा घड़ा हुआ
कुछ ख़्वाब कुछ गुलाब थे चेहरे के आस-पास
देखा तुझे तो हौसला दिल को बड़ा हुआ
जुग जीवनों से रूह तिरी रूह में निहाँ
जुग जीवनों से दिल तिरे दिल से उड़ा हुआ
दिलबर के दर्शना से दरकती हुई नज़र
अखियों सड़ी सलखियों को नश्शा लड़ा हुआ
चिपकी थी पंखुड़ी कोई उस लब से एक शब
आमों का बौर था सर-ए-गेसू झड़ा हुआ
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