दिल पे थी सब्त जो तहरीर मिटाई न गई
दिल पे थी सब्त जो तहरीर मिटाई न गई
किस की तस्वीर थी तस्वीर भुलाई न गई
आ के उस बन में मिले फिर न कभी दो प्रेमी
घास पगडंडियों से झील से काई न गई
प्यार की आँच से जल उट्ठा कँवल-कान्त बदन
उस से सूरत मिरी नैनों में छुपाई न गई
मुझ में रच बस के भी तू मुझ से अलग ख़ुद से अलग
तेरे जीवन की अमिट-रूप इकाई न गई
टूटे कत्बों के सिवा मिल न सका कुछ भी मगर
इस मिटे शहर के टीलों की खुदाई न गई
रात भर जल पे गिरीं जलते सितारों की लवें
मुझ से चादर कोई नद्दी पे बिछाई न गई
इस के दर्शन से मिली मुझ को ख़ुद अपनी पहचान
शक्ल इक रूह तलक सूरत-ए-आईना गई
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