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ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा - नासिर काज़मी कविता - Darsaal

ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा

ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा

सुख़न-कदा मिरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा

नए पियाले सही तेरे दौर में साक़ी

ये दौर मेरी शराब-ए-कुहन को तरसेगा

मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ कर अमाँ न मिली

वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा

इन्ही के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़

ज़माना सुहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वर्ना

ये बाग़ साया-ए-सर्व-ओ-समन को तरसेगा

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना इक दिन

ज़मीन पानी को सूरज किरन को तरसेगा

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In Hindi By Famous Poet Nasir Kazmi. is written by Nasir Kazmi. Complete Poem in Hindi by Nasir Kazmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.