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न काम आई मिरे कुछ मिरी शराफ़त भी - नासिर चौधरी कविता - Darsaal

न काम आई मिरे कुछ मिरी शराफ़त भी

न काम आई मिरे कुछ मिरी शराफ़त भी

मिरे ख़िलाफ़ हुई उस के साथ ख़िल्क़त भी

वो शख़्स यूँ था कि जैसे धुला-धुलाया हुआ

थी ख़त्म उस पे हर इक तरह की नफ़ासत भी

वो जामा-ज़ेब था इतना कि तकते ही रहिए

ये दिल तो चाहता था मुस्तक़िल रफ़ाक़त भी

बिला-सबब न था उस में वफ़ूर-ए-ख़ुद-बीनी

ग़ुरूर-ए-हुस्न के हम-राह थी नज़ाकत भी

था उस का चेहरा-ए-ज़ेबा कि माह-पारा कोई

सुकून-बख़्श थी उस की मुझे तमाज़त भी

बरत न सकता था खुल कर वो इल्तिफ़ात मगर

थी उस की चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ में मुरव्वत भी

मैं उस के सामने गुम-सुम रहा सुख़न-बस्ता

न कर सका कभी अर्ज़-ए-हुनर की जुरअत भी

मैं कार-गाह-ए-जहाँ में अज़ल से हूँ तन्हा

न रास आई मुझे महवशों की क़ुर्बत भी

हुजूम-ए-शौक़ में यूँ भी हुआ कि मैं 'नासिर'

हवास गुम किए भूले रहा ज़ेहानत भी

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In Hindi By Famous Poet Nasir Chaudhri. is written by Nasir Chaudhri. Complete Poem in Hindi by Nasir Chaudhri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.