ये और बात कि मौजूद अपने घर में हूँ

ये और बात कि मौजूद अपने घर में हूँ

मैं तेरी सम्त मगर मुस्तक़िल सफ़र में हूँ

न जाने अगली घड़ी क्या से क्या में बन जाऊँ

अभी तो चाक पे हूँ दस्त-ए-कूज़ा-गर में हूँ

मैं अपनी फ़िक्र की तज्सीम किस तरह से करूँ

बुरीदा-दस्त हूँ और शहर-ए-बे-हुनर में हूँ

न जाने कौन सा मौसम मुझे हरा कर दे

नुमू के वास्ते बे-ताब हूँ शजर में हूँ

ये दोस्ती भी अजब चोब-ए-ख़ुश्क है 'नासिर'

निभा रहा हूँ मगर टूटने के डर में हूँ

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In Hindi By Famous Poet Nasir Ali Syed. is written by Nasir Ali Syed. Complete Poem in Hindi by Nasir Ali Syed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.