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एक अनहोनी का डर है और मैं - नासिर अली सय्यद कविता - Darsaal

एक अनहोनी का डर है और मैं

एक अनहोनी का डर है और मैं

दश्त का अंधा सफ़र है और मैं

हसरत-ए-तामीर पूरी यूँ हुई

हसरतों का इक नगर है और मैं

बाम-ओ-दर को नूर से नहला गया

एक उड़ती सी ख़बर है और मैं

मश्ग़ला ठहरा है चेहरे देखना

उस के घर की रहगुज़र है और मैं

जब से आँगन में उठी दीवार है

इस हवेली का खंडर है और मैं

वक़्त के पर्दे पे अब तो रोज़-ओ-शब

इक तमाशा-ए-दिगर है और मैं

जाने क्या अंजाम हो 'नासिर' मिरा

एक यार-ए-बे-ख़बर है और मैं

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In Hindi By Famous Poet Nasir Ali Syed. is written by Nasir Ali Syed. Complete Poem in Hindi by Nasir Ali Syed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.